scorecardresearch
 
Advertisement
विश्व

Explainer: अफगानिस्तान के सैकड़ों प्रोजेक्ट में भारत का 22 हजार करोड़ रुपये का निवेश दांव पर, अब क्या होगा भविष्य?

तालिबान के कब्जे से भारत की चिंताएं बढ़ीं
  • 1/12

काबुल की सत्ता पर तालिबान के कब्जे से ही भारत की चिंताएं काफी बढ़ गई हैं. भारत के लिए सामरिक लिहाज से काफी नुकसान की बात तो है ही, वहां भारत का करीब 22 हजार करोड़ रुपये का सरकारी निवेश दांव पर लगा हुआ है. आइए समझते हैं कि भारत के कौन से प्रोजेक्ट में कितना कुछ दांव पर है. (फाइल फोटो: Getty Images)

पीएम मोदी कई बार अफगानिस्तान जा चुके हैं
  • 2/12

अफगानिस्तान के इलाके से वैसे तो भारत का रिश्ता शताब्दियों पुराना है. लेकिन आज के समय की बात करें तो खासकर पिछले 20 साल से वहां लोकतांत्रिक सरकार के गठन के दौर में भारत ने काफी बढ़-चढ़ कर अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में हाथ बंटाया है. भारत ने वहां कई महत्वपूर्ण सड़कें, स्कूल, अस्पताल आदि बनाए हैं और बहुत से प्रोजेक्ट का काम अभी भी भारतीय एजेंसियां और कर्मचारी कर रहे थे. भारत सरकार वहां के विकास के लिए करीब 3 अरब डॉलर (करीब 22,273 करोड़ रुपये) का सहयोग कर चुकी है. (फाइल फोटो: Getty Images)

विदेश मंत्री एस जयशंकर
  • 3/12

चल रही हैं ये सैकड़ों परियोजनाएं: नवंबर 2020 में जेनेवा में आयोजित अफगानिस्तान कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बताया था कि अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांत में भारत 400 से ज्यादा परियोजनाओं पर काम कर रहा है और वहां का कोई भी इलाका भारतीय विकास कार्य से अछूता नहीं है.  पिछले 20 साल में जब अमेरिका-नाटो के सैनिकों ने सुरक्षा प्रदान की, काबुल में लोकतंत्र का विकास हुआ, भारत ने वहां के हर क्षेत्र में विकास कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान किया. भारत ने वहां सड़कों से लेकर स्कूल, अस्पताल, बांध, बिजली सब-स्टेशन,टेलीकॉम नेटवर्क, बिजली ट्रांसमिशन लाइन, सोलर पैनल जैसे वे सभी प्रोजेक्ट बनाने में मदद की जिनसे देश का भविष्य आकार ले सकता था. (फाइल फोटो: PTI)

Advertisement
लगातार बढ़ता रहा सहयोग 
  • 4/12

भारत ने इन सब कार्यों के लिए अफगानिस्तान में करीब 3 अरब डॉलर का निवेश किया है. इनमें करीब 400 बुनियादी ढांचा प्रोजेक्ट शामिल हैं. भारत ने पिछले साल ही अफगानिस्तान में 8 करोड़ डॉलर के 100 कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट शुरू करने का ऐलान किया था. हाल में काबुल जिले में Shatoot डैम के निर्माण के लिए समझौता हुआ था, जिससे करीब 20 लाख लोगों को साफ पेयजल मुहैया किया जा सकेगा. (फाइल फोटो: Getty Images)

तालिबान का कब्जा
  • 5/12

सलमा डैम: हेरात प्रांत में बना 42 मेगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता का सलमा बांध (Salma Dam) भारत के विकास प्रोजेक्ट की पताका लहराता है. इस पनबिजली और सिंचाई परियोजना की शुरुआत साल 2016 में हो चुकी है और इसे अफगानिस्तान-भारत मैत्री बांध कहा जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इस बांध को 4 जून, 2016 को उद्धाटन किया था. इस इलाके पर भी तालिबान का कब्जा हो चुका है. (फाइल फोटो: Getty Images)

हाई प्रोफाइल प्रोजेक्ट
  • 6/12

अफगानिस्तान में 218 किमी लंबा Zaranj-Delaram हाइवे एक और हाई प्रोफाइल प्रोजेक्ट है. इसका निर्माण भारत के सीमा सड़क संगठन (BRO) ने किया है. यह ईरान से सटे इलाके में है. इस सड़क के निर्माण में करीब 15 करोड़ डॉलर (करीब 1113 करोड़ रुपये) की लागत आई है. यह एक रिंग रोड जैसा है जो दक्ष‍िण में कंधार, गजनी होते हुए पूरब में काबुल और पश्चिम में हेरात तक जाता है. (फाइल फोटो: Getty Images)

भारत ने अफगानिस्तान में कई सड़कें बनाई हैं
  • 7/12

यह सड़क इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि यह भारत को ईरान के चाबहार पोर्ट तक पहुंचने का एक वैकल्प‍िक रास्ता मुहैया कर सकता है (पाकिस्तान अगर भारत को अफगानिस्तान से व्यापार के लिए रास्ता नहीं देता है तो). इस सड़क के निर्माण में 11 भारतीयों और 129 अफगानी लोगों की जान जा चुकी है. इनमे से छह भारतीय आतंकियों के हमले और 5 भारतीय एक्सीडेंट में मरे हैं. इसके अलावा भारत ने अफगानिस्तान में कई छोटी-छोटी सड़कें भी बनाई हैं. 

अफगान संसद भवन का निर्माण भी भारत ने किया
  • 8/12

अफगान संसद: काबुल में अफगान संसद (National Assembly या Mili Shura)  भवन का निर्माण भी भारत ने किया है. इस पर करीब 9 करोड़ डॉलर (करीब 670 करोड़ रुपये) की लागत आई थी और इसका उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी ने 2015 में किया था. यह अफगानिस्तान के लोकतंत्र को भारत के सम्मान की तरह था. इसमें एक खंड पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से है. (फाइल फोटो)

इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में अहम भूमिका
  • 9/12

भारतीय कंपनियों ने अफगानिस्तान में बिजली आपूर्ति की दिशा में भी अहम भूमिका निभाई है. काबुल के उत्तर में बागलान प्रांत की राजधानी पौल-ए-खुमरी Pul-e-Khumri में बना 220 केवी का डीसी ट्रांसमिशन लाइन ऐसा ही एक अहम प्रोजेक्ट है. भारतीय कंपनियों और वर्कर ने अफगानिस्तान के कई राज्यों में टेलीकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में भी अहम भूमिका निभाई है. (फाइल फोटो: Reuters)

Advertisement
अस्पताल का पुनर्निर्माण
  • 10/12

हेल्थ सेक्टर का विकास: भारत ने काबुल में बच्चों के उस अस्पताल का पुनर्निर्माण किया है जो जंग से बर्बाद हो गया था. इसकी पहली बार स्थापना 1972 में की गई थी और इसे 1985 में इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेथ नाम दिया गया. इसके अलावा भारत ने अफगानिस्तान के सीमावर्ती प्रांतों बादशाह खान, बाल्ख, कंधार, खोस्त, कुनार, नांगरहार, निरमुज, नूरिस्तान और पकतिया में कई क्लीनिक बनाए हैं. (फाइल फोटो: Facebook)

द्विपक्षीय व्यापार में काफी बढ़त
  • 11/12

कितना है द्विपक्षीय व्यापार: साल 2017 में भारत ने अफगानिस्तान के साथ एक एयर फ्रेट कॉरिडोर बनाया, इसके बाद से वहां से द्विपक्षीय व्यापार में काफी बढ़त हुई है. साल 2019-20 में भारत और अफगानिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 1.3 अरब डॉलर (करीब 9600 करोड़ रुपये) तक पहुंच गया था. इसमें भारत से निर्यात करीब 90 करोड़ डॉलर का था. अफगानिस्तान से खासकर ताजे ड्राई फ्रूट पाकिस्तान होते हुए वाघा बॉर्डर से आते हैं. भारत से अफगानिस्तान को दवाओं, मेडिकल इक्व‍िपमेंट, कंप्यूटर एवं इससे जुड़े सामान, सीमेंट और चीनी का निर्यात किया जाता है. (फाइल फोटो: twitter)

तालिबान इंफ्रास्ट्रक्चर को बर्बाद तो नहीं करेगा
  • 12/12

अब इन सभी प्रोजेक्ट का भविष्य अब अधर में दिख रहा है. कुछ जानकारों का कहना है कि तालिबान को जन सुविधाएं तो देनी ही होंगी. इसलिए इस बार तालिबान भारत के निवेश को नष्ट करने की वैसी कोशिश नहीं करेगा, जैसा कि उसने पहले किया था. लेकिन तालिबान पर भारत का कोई नियंत्रण नहीं होगा. उदाहरण के लिए सलमा बांध जिन शर्तों पर भारत ने बनाया है, उन्हें शायद तालिबान न माने. तालिबान अफगानिस्तान के इंफ्रास्ट्रक्चर को बर्बाद तो नहीं करेगा, लेकिन चलाएगा अपने हिसाब से ही. उसमें भारत का स्टेक नहीं रह जाएगा. (फाइल फोटो: Getty Images) 

 

Advertisement
Advertisement